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तो पिछले चार सार से मैं गॉर्मन्ट स्कूल में टीचर थी
दो साल पहले ट्रांसफर के पास की शेहर में करवाया
तो वही पढ़ाती और हर शनिवार को घहर आती थी
नीरस से जिन्दगी जीती जीते मेरा सभाव कब चिर्चडा हो गया पता ही नहीं चला
स्कूल के बच्चे जो पहले मुझसे बहुत प्यार कर रहे थे